धरती पर पहले मनु कौन थे? और मत्स्यावतार ll avatar

            स्वायंभुव मनु का जन्म कैसे हुआ? विस्तृत कथा

ब्रह्माजी, माँ सरस्वती, image,


सनातन धर्म / हिन्दू धर्म की सृष्टि-कथा से जुड़ा है। धर्मग्रंथों में “मनु” मानव जाति के पहले पुरुष और मानव सभ्यता के मूल प्रणेता माने जाते हैं। अलग-अलग ग्रंथों में उनके जन्म व कथा के कुछ भेद मिलते हैं, पर मुख्य कथा इस प्रकार है:

धरती पर पहले मनु कौन थे?

👉मनु — अर्थ और परिचय

मनु शब्द का अर्थ है मनुष्य का आदिकर्ता मनुष्यता का मूल पुरूष। पौराणिक गणना में मनु वही होते हैं जिनके वंश से मानव जाति का प्रजनन (प्रसार) प्रारम्भ हुआ। हर युग/मन्वन्तर में एक-एक मनु होता है जो उस युग का आदिपुरुष माना जाता है

👉 सबसे पहला मनु स्वयंभुव मनु (Swayambhuva Manu)

पौराणिक परंपरा के अनुसार पृथ्वी पर “सबसे पहला” मनु स्वयम्भुव मनु थे अर्थात् जो ब्रह्मा की रचना से उत्पन्न हुए। इन्हें ‘स्वयंभु’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे परमसृजनकर्ता ब्रह्मा के मानस पुत्रों/रचनाओं में से उत्पन्न माने जाते हैं।

हिन्दू धर्म में कुल 14 मनुओं का उल्लेख है, जो अलग-अलग मन्वन्तरों में पृथ्वी पर शासन करते हैं।

लेकिन सबसे पहले मनु "स्वायंभुव मनु" कहे जाते हैं।

पौराणिक समयामान (कालविभाजन) के अनुसार हर कल्प/दिन में चौदह (14) मनु आते हैं — प्रत्येक मनु का समय (मन्वन्तर) अलग होता है। यानि सृष्टि के चक्रों में बार-बार मनु आते हैं। वर्तमान मन्वन्तर का मनु वैवास्वत बताया जाता है।

इसलिए “पहला मनु” का अर्थ दो तरह से लिया जा सकता है: सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न स्वयम्भुव मनु को पहला कहा जाता है; पर चालू मन्वन्तर का प्रथम और वर्तमान मानव-संरक्षक वैवास्वत मनु को भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

स्वायंभुव मनु “जो स्वयं भगवान से उत्पन्न हुए”

ये सृष्टि के प्रथम मनु थे। इन्हीं से मानव सभ्यता की उत्पत्ति मानी जाती है।

उनका जन्म कैसे हुआ?.

सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्माजी (सृष्टिकर्ता) ने अपने मानस (मनो) से कई जीवों और महान योगियों/ऋषियों की सृष्टि की। इन्हीं मानसपुत्रों में मनु भी पैदा हुए।

कुछ ग्रन्थों के अनुसार ब्रह्मा ने स्वयंभुव मनु और उनके सहचर (पत्नी) शतरूपा को सृष्टि का संचालन और मानवों का विस्तार करने हेतु बनाया। शतरूपा का अर्थ है — “जिनके अनेक रूप हैं”।            

       स्वायंभुव मनु का जन्म कैसे हुआ? विस्तृत कथा

स्वयंभुव मनु की संताने — पुत्र (जैसे प्रियव्रत, उत्तानपाद) और पुत्रियाँ (जैसे आकूति, देवहूति, प्रसूति इत्यादि) — इनके वंश से आगे के लोग और राजवंश उत्पन्न हुए। कुछ पुत्र-पीढ़ियाँ पौराणिक राजाओं और ऋषियों की शुरुआत बनीं।

स्वयम्भुव मनु को सृष्टि के नियम (धर्म), सामाजिक क्रम और प्रारम्भिक शिक्षा-संस्थापन का क्रेता बताया जाता है, अर्थात् उन्होंने मानव समुदाय के आचार-विचार और व्यवस्थाएँ स्थापित कीं।

यह कथा मुख्यतः पुराणों—भागवत पुराण, विष्णु पुराण, मनुस्मृति आदि में मिलती है।

👉1.सृष्टि की शुरुआत

सृष्टि के प्रारम्भ में केवल नारायण (भगवान विष्णु) थे।

उनकी नाभि से एक दिव्य कमल उत्पन्न हुआ। उस कमल पर "ब्रह्माजी" प्रकट हुए।

👉2. ब्रह्मा द्वारा मनु का निर्माण

सबसे पहले ब्रह्माजी ने अपने "मानस पुत्र" रचे—जैसे मरीचि, अत्रि, अंगिरा आदि

इन ऋषियों से आगे सृष्टि का विस्तार होना था।

फिर ब्रह्माजी ने मानव सृष्टि के विस्तार हेतु 'स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा' को उत्पन्न किया।

ग्रंथों में दो प्रकार से मनु-शतरूपा के जन्म का वर्णन मिलता है

(A) मानसिक उत्पत्ति (मानस-पुत्र स्वरूप)

कई पुराणों में लिखा है कि:

ब्रह्मा ने अपने मन (चेतना) से मनु और शतरूपा की उत्पत्ति की।

इसी से उनका नाम पड़ा

मनु → ‘मन’ से उत्पन्न

शतरूपा → अलग-अलग प्रकार के रूप धारण करने वाली

ये मानव जाति के प्रथम (माता-पिता) माने गए।

(B) ब्रह्मा के शरीर के हिस्सों से उत्पत्ति

कुछ कथाओं में:

ब्रह्मा के दाएं अंग से मनु प्रकट हुए

ब्रह्मा के बाएं अंग से शतरूपा

यह प्रतीकात्मक रूप से ‘पुरुष-स्त्री के संतुलन’ का वर्णन है।

स्वायंभुव मनु का जीवन और कार्य

स्वायंभुव मनु को पृथ्वी पर शासन का दायित्व मिला।

उन्होंने धर्म, नीति, विवाह, समाज, और मानव आचरण के "पहले नियम" बनाए।

इसीलिए कहा जाता है कि:

मनुस्मृति में मनु द्वारा बनाए गए नियम संकलित हैं।

✅ मनु-शतरूपा के तीन पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं:

उत्तानपाद (ध्रुव के पिता)

प्रियव्रत

आकूति

देवहूति

प्रसूतिः

इनसे आगे सम्पूर्ण मानव जाति और वंशों का विस्तार हुआ।

संक्षिप्त सार 

👉 विषय          विवरण                             

पहले मनु       स्वायंभुव मनु 

पत्नी             शतरूपा                                         

जन्म         ब्रह्मा के मन/चेतना तथा शरीर से उत्पन्न   

कार्य  मानव सृष्टि का विस्तार, समाज के नियम स्थापित करना 

स्त्रोत  भागवत पुराण, विष्णु पुराण, मनुस्मृति          

“वर्तमान मानवों” की कथा: वैवास्वत मनु (Vaivasvata Manu) और महाप्रलय (बाढ़) कथा

                    स्वायंभुव मनु का जन्म कैसे हुआ? कथा

पुराणों में एक और महत्वपूर्ण मनु हैं वैवास्वत मनु (जिसे श्राद्धदेव मनु भी कहा जाता है)। वे सूर्यदेव (विवस्वान) के वंश से हैं अतः नाम वैवास्वत। पौराणिक रूप से वर्तमान मन्वन्तर (युग चक्र) का मनु वैवास्वत माना जाता है।   

✅ वैवास्वत मनु का जन्म / वंश

वैवास्वत मनु सूर्य (विवस्वान) के पुत्र थे उनके परिवार से वर्तमान मानव वंश चलता आया मान्यता है।

वैवास्वत मनु को विशेष पहचान इसलिए मिली कि वे महाप्रलय/बाढ़ (विष्णु के मत्स्यावतार कथा से जुड़ी) के समय जीवों और ग्रंथों को बचाने वाले व्यक्ति थे।

✔ मत्स्यावतार और महाप्रलय (संक्षेप कथा)

पुराण बताते हैं कि एक बार मनु (वैवास्वत) ने एक छोटे-मोटे मछली के रूप में भगवान विष्णु को पाया। वह मछली समय-समय पर बढ़ती गई और मनु को सतर्क कर दिया कि आनेवाली महाप्रलय में वे (मनु), कुछ मुनियों, तथा बीज/सम्पदाओं को बचाएँ।

महाप्रलय आते ही वैवास्वत मनु ने एक बड़े नौका/बोट में – जिनमें अन्य ऋषि-मुनि और जिंदा जीवों के बीज/वंशाणु रखे थे, बंद कर दिया। विष्णु मत्स्यावतार बनकर उस नौका का मार्गदर्शन कर बड़े हिमालय/पहाड़ों से बाँध कर सुरक्षित रखा। इस प्रकार मानवता का पुनःपुनर्जनन हुआ।

इस कारण से वैवास्वत मनु को वर्तमान मानवों का प्रणेता और जीवन-संरक्षक भी माना जाता है। 

                                  स्वायंभुव मनु का जन्म कैसे हुआ?संक्षेप कथा

🙏निष्कर्ष

पौराणिक परंपरा के अनुसार पृथ्वी पर पहला मनु सामान्यतः स्वयम्भुव मनु माने जाते हैं — जो ब्रह्मा की मानस-रचना से उत्पन्न हुए।

वहीं प्रचलित और वर्तमान मानव-उत्पत्ति की कथा में वैवास्वत मनु का विशेष स्थान है — जिन्होंने महापुराणों की मत्स्य (मछली) कथा के अनुसार महाप्रलय के बाद मानवता का पुनः स्थापना की।

पुराणों में कई संस्करण और भिन्नताएँ हैं; ऊपर बताया गया संस्करण सबसे सामान्य और लोकप्रिय प्रमाणित कथाओं पर आधारित है।

अगर आप चाहें तो मैं:

स्वयम्भुव मनु की विस्तृत वंशावली (बेटों/बेटियों का नाम व उनकी कथाएँ) दे दूँ,

या वैवास्वत मनु और मत्स्यावतार की कथा को श्लोक/पुराणिक संदर्भों के साथ और विस्तार से कहानी स्वरूप लिख दूँ।


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