सनातन धर्म: सबसे पवित्र धर्म क्यों है?
सनातन धर्म को शाश्वत धर्म कहा जाता है, जिसका अर्थ है – ऐसा धर्म जिसका न आदि है न अंत। यह केवल एक धार्मिक व्यवस्था नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति है जो आत्मा, प्रकृति और ब्रह्मांड के गहरे संबंधों को समझाती है।
सनातन धर्म का अर्थ है "सदा बना रहने वाला धर्म"। यह धर्म न किसी व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित किया गया, न ही किसी कालखंड तक सीमित है,
आत्मा और ब्रह्म का संबंध
इस धर्म में आत्मा को परमात्मा का अंश माना गया है। मोक्ष प्राप्ति इसका अंतिम लक्ष्य है, जो कर्म, ज्ञान और भक्ति के मार्ग से संभव है।
सनातन धर्म: सबसे पवित्र धर्म क्यों है?
सनातन धर्म का मूल आधार वेद, उपनिषद, पुराण और भगवद गीता हैं। ये ग्रंथ न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण भी प्रदान करते हैं
इस धर्म में अनेक देवी-देवताओं की पूजा होती है, लेकिन सभी को एक ही ब्रह्म का रूप माना जाता है।
हर व्यक्ति के कर्मों के अनुसार उसका भविष्य निर्धारित होता है। यह सिद्धांत व्यक्ति को जिम्मेदार बनाता है।
सनातन धर्म में पुनर्जन्म को स्वीकार किया गया है और मोक्ष को अंतिम लक्ष्य माना गया है।
यह धर्म पंचतत्वों (जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी, आकाश) को पूजनीय मानता है और पर्यावरण संरक्षण को धर्म का हिस्सा मानता है।
योग, ध्यान और प्राणायाम सनातन धर्म की देन हैं, जो आज पूरी दुनिया में स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए अपनाए जा रहे हैं।
यह धर्म सभी मतों और विचारों का सम्मान करता है, जिससे इसमें सहिष्णुता की भावना प्रबल है।
सनातन धर्म: सबसे पवित्र धर्म क्यों है?
सनातन धर्म केवल बाह्य पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक उन्नति और आत्मा की शुद्धता पर बल देता है।
यह धर्म किसी जाति, वर्ग या देश तक सीमित नहीं है। इसकी शिक्षाएँ सभी मानवता के लिए उपयोगी हैं।
वेदों और उपनिषदों में गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा और मनोविज्ञान जैसे विषयों की जानकारी मिलती है, जो इसकी गहराई को दर्शाती है
सनातन धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि एक संतुलित, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक जीवन शैली है। इसकी पवित्रता इसकी शाश्वतता, समावेशिता और आत्मिक गहराई में निहित है।
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